प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Saturday, 8 November 2025

दिल के जज़्बात


 

मुहब्बत हो गई है तो उसे जताना चाहिए।
दिल के जज़्बातों को यूँ न छुपाना चाहिए।।

आसमॉं में बादल मंडरा रहे है बड़ी देर से।
अब तो बारिश बनकर उन्हे बरसना चाहिए।।

दर्द को कब तलक दिल में यूँ छिपाओगे तुम।
कभी तो आँसुओं के जरिए से उसे जताना चाहिए।।

दूरियां दिल की न हो,फासले जिस्मों के लंबे सही।
इन फासलों के दरमियान भी दिलों को मिलना चाहिए।।

अगर बाज हो तूम और अंदाज वहीं रखते हो।
'मेघ' फिर सुरज को भी छुकर लौटने का इरादा होना चाहिए।।


रविवार, ९/११/२०२५ , १०:१५ AM
अजय सरदेसाई -मेघ

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