प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday 8 July 2024

किसने रोका था

प्याले से जो जाम छलक जाए,तो छलकने दो।

जब आंखों से छलक रही थी,तब किसने रोका था।।

 

गम अपना है, दामन छुडाओ इससे।

खुशी जब दामन छोड़ गयी ,तब किसने रोका था

 

सच कहता हूँ यारों,पिई नहीं है मैंने, मुझे पिलाई गई है।

उन हाथों को,जो पिला रहे थे,उनको,तब किसने रोका था।।

 

झूमने दो मुझे आज यारों ,अगर नशे में ही सही

जब मै होश में था जनाब,तब ग़म ने रोका था।।

 

खुशी मिली तो जिन्दगी में,ऐसा नही के मिली नहीं

क्या बताऊं यारों,तब मैं झुमा नहीं,किसी नजर की शरम ने रोका था।।

 

सोमवार, //२४  ०२:३८ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

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