वो जो गैर थे,शायद करिब
हो रहे हैं।
वो
देखते ही देखते,हम से दूर हो रहे हैं।।
हम क्या सुनाए किसीको बिती अपने दिल की।
हम प्यार करके उनको,कमदिल हो रहे हैं।।
वो जिस गली से भी गुजरे,हमारा ही नाम उछला।
वो प्यार हमसे करके,बड़े मशहूर हो रहें हैं।।
आते थे रोज छत पर, जैसे चाँद फलक पर।
हो अमवासी जैसे,वो आज क्यो छुप रहें हैं।।
बेचैन क्यों है आँखे,किस की राह तक रहे हैं।
बेवजह ही क्यों हम,यु बेकरार हो रहें हैं।।
बुधवार , १०/०७/२०२४ , १०:१० पं
अजय सरदेसाई (मेघ)
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