हसरत, आरज़ू, ख्वाहिश, तमन्ना,लगते एक है, जरा फर्क है इनमें,
ये जिन्दगी के चार सुतुनु है ,क्या बताऊँ जरा फर्क है इनमें ।
हसरतें दिल की चिंगारी, जो बुझ न पातीं कभी,
पूरी हो न पाईं जो, वो दर्द बन जातीं कभी।
आरज़ू की हर सुबह, नई उम्मीदें जगातीं,
हर दिन नए सपनों की, नई राहें दिखातीं।
ख्वाहिशें रातों के ख्वाब, जो आँखों में सजतीं,
दिल की गहराईयों में, रंगीन परियाँ बनतीं।
तमन्ना है मंजिल की चाह, जो पूरा हो हर अरमान,
जीवन को दे नई दिशा, जैसे हो पूरा हर जान
'मेघ' कहे इन चारों का मेल, है जीवन का अनमोल खेल,
इनसे ही रौशन है हर राह, इसीसे है हर शख्स का मेल
सुतुनु =स्तंभ
गुरुवार , ११/७/२०२४ १०:४० AM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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