खुशी इतनी हुई है के हलक से उतर ही नहीं रही।
कहीं सास अटक न जाए ,तो जाम ओठो से लगा लिया।।
सच कहता हूँ ,जाम नहीं है ये, पानी है दोस्त।
प्यास बुझानी थी,तो हलक से उतार दिया।।
शराब जब गले से उतरी,तो आँखों से छलकी।
पानी हो या फिर शराब,कमज़र्फ छलक ही जाती है।।
शराब में बर्फ चाहे जितना भी मिलादो जनाब
कम-बख़्त साली कलेजा फिर भी जलाही देती है।।
ग़म ग़लत करने के लिए जरासी शराब क्या पिली।
होश भी न रहा और ग़म के साथ दुनिया भी भूल गया।।
सोमवार, ७/८/२४ ०५:५५ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
No comments:
Post a Comment