प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday, 25 June 2025

मैं ही सब कुछ हूँ और मैं कुछ भी नाहीं।

 

मैं स्वतंत्र भी हूँ और परतंत्र भी मैं ,

मैं स्वामी भी हूँ और सेवक भी मैं।

मैं ज्ञानी भी हूँ और अज्ञानी भी मैं ,

मैं ही साधना हूँ और साधक भी मैं।

 

मैं रोशनी भी हूँ और अंधकार भी मैं,

मैं सृजन भी हूँ और संहार भी मैं।

मैं प्रश्न भी हूँ और उत्तर भी मैं,

मैं ही आरंभ भी हूँ और अंत भी मैं।

 

मैं राह भी हूँ और मंज़िल भी मैं,

मैं स्वभाव भी और कुस्वभाव भी मैं।

मैं अणू भी हूँ और अनंत भी मैं,

मैं ही प्रचुर भी और अभाव भी मैं।    

 

मैं संत भी हूँ और दुष्ट भी मैं, 

मैं अपुष्ट भी हूँ और पुष्ट भी मैं।

मैं सागर भी हूँ और सरिता भी मैं ,

मैं पूर्ण भी हूँ और शून्य भी मैं।

 

मुझे जानते है सब और कोई जानता नाहीं,

मैं सभी में होकर भी मैं किसी में भी नाहीं।

जो सोचते है मुझे मैं वह सोच भी नाहीं,

मैं ही सब कुछ हूँ और मैं कुछ भी नाहीं।

 

बुधवार २५//२५, ०१:१० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)