प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday, 24 July 2025

ग़ज़ल - जाया नहीं करते

 


मतला:

जज़्बात हर कहीं ज़ाहिर करके जाया नहीं करते।

हुस्न बेवफ़ा है इसपर वफ़ाएं जाया नहीं करते।।

 

ख़ामोश रहके दिल की सदा को सुनना बेहतर है।

हर बात ज़बाँ से  कहके फ़साने जाया नहीं करते।।

 

हमने भी कई बार कहा है बहुत कुछ लोगों से लेकिन।

दिल के जख्मों को दिखाकर हम जाया नहीं करते।।

 

तन्हाई में जो आँसू गिरे हैं रूह की गहराई में।

वो राज़-ए-दिल किसी से मिलाके जाया नहीं करते।।

 

उल्फ़त के रास्ते में ख़ता कोई भी हो जाए अगर।

इज़्ज़त के सौदे हर बार तौलकर जाया नहीं करते।।

 

मक़ता

'मेघ' की ख़ामोशी भी एक कहानी बयां करती है।

कुछ राज दिल के ज़ाहिर करके जाया नहीं करते।।

 

गुरुवार , २४/७/२५ , ४:४० PM

अजय सरदेसाई - मेघ