प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Tuesday 8 October 2024

आइने में अपना अक्स देखा


 

आइने में अपना अक्स देखा, जाने कौन नज़र आया।

अब मैं क्या कहूं मुझे और क्या क्या नज़र आया।।

कहते है लोग के आइना झूठ बोलता नहीं।

सच कहता हु मगर मुझे सब तो झूठ नज़र आया।।

ढूंढ़ता रहा मैं उसे हर जगह शिद्दत से।

खुदा मुझे कहीं नहीं नज़र आया।।

सोचता हूँ के ढूँढू उसे अब आसमाँ में।

इन्सां मुझे जमीं पर नहीं नज़र आया।।

अभी कुछ साल ही बीते थे मुल्क छोड़कर।

लौटा तो हर शख्स अजनबी नज़र आया।।

 

मंगलवार , ०८/१०/२०२४ , २२:५० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)