शेर १:
न जाने क्यों हमारा आईना यूँ टूटकर बिखर गया।
जो अक्स था परिवार का, वो हज़ार टुकड़ों में बंट गया।।
शेर २:
हर शख़्स अब ख़ुद की ही बातों में उलझा रहता है।
मोहब्बत का वो धागा, न जाने कब टूटकर कट गया।।
शेर ३:
एक वक़्त था दीवारें घर की उसकी चहक से गूंजतीं।
अब खामुशी का साया है, घर का घरपन टूट गया।।
शेर ४:
ख़्वाबों की जो रौनक थी, उसने भी साथ छोड़ा है।
परी-सी जो बिटिया थी घर की, उसका दिल भी टूट गया।।
शेर ५:
हर शख्स अब तलाशेगा उजाले, किसी नए आईने में।
सुना नही जो टूटा एक बार, फिर से वापस जुड़ गया।।
शेर ६:
मगर जो परी थी सलौनी,दो हिस्सों मे बट गयी।
घर उसके सपनों का जो बिचो-बिच से टूट गया।।
शनिवार , ६/९/२५ , १६:०० hrs
अजय सरदेसाई -मेघ
No comments:
Post a Comment