प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Sunday, 14 September 2025

वो हसीं मैं मुस्ताक़


मतला:
वो हसीं मैं मुस्ताक़,वो अख़्लाक़ मैं ग़ुस्ताख़। 
मेरा इश्क़ है सादिक़,ये बस इत्तिफ़ाक़,मैं ग़ुस्ताख़।।
 
शेर २:
तेरी आँखों से बरसी,वो नूर-ए-हया की शबनम।
मैंने नज़रों से पिली, तो मैं तिश्नाक, मैं ग़ुस्ताख़।।
 
शेर ३:
तेरी बातों में थी, वो सुर्ख़ी-ए-लब-ओ-नमी।
मैंने ख़्वाबों में चूमा, हुआ बे-अख़्लाक़ मैं ग़ुस्ताख़।।
 
शेर ४:
तिरी ख़ामुशी बोली, मैं सुनता रहा ख़्वाबों में।
रात भर तिरे चेहरे का नूर हुआ इशराक़, मैं ग़ुस्ताख़।।
 
मक़ता:
"मेघ" चुप है मगर दिल में तिरा तराना है।
दुनिया को नहीं मालूम ये इश्तिराक़, मैं ग़ुस्ताख़।।
 
 
रविवार, १४/९/२५ , ९:०३ PM
अजय सरदेसाई -मेघ 

 

·        अख़्लाक़ = अच्छे संस्कारों वाला, शिष्ट और आदर्श व्यवहार करने वाला व्यक्ति

·        मुस्ताक़ = इच्छुक, आतुर

·        इत्तिफ़ाक़ = संयोग, घटना

·        तिश्नाक़ = प्यासा, आतुर

·        बे-अख़्लाक़ = बदतमीज़, बिन-शिष्टाचार

·        इशराक़ = सुबह का उजाला, रौशनी का फैलना

·        इश्तिराक़ = साझेदारी, साझापन

·        अख़्लाक़ = अच्छे संस्कारों वाला, शिष्ट और आदर्श व्यवहार करने वाला व्यक्ति

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