मतला:
वो हसीं मैं मुस्ताक़,वो अख़्लाक़ मैं
ग़ुस्ताख़।
मेरा इश्क़ है सादिक़,ये बस इत्तिफ़ाक़,मैं ग़ुस्ताख़।।
शेर २:
तेरी आँखों से बरसी,वो नूर-ए-हया की शबनम।
मैंने नज़रों से पिली, तो मैं तिश्नाक, मैं ग़ुस्ताख़।।
शेर ३:
तेरी बातों में थी, वो सुर्ख़ी-ए-लब-ओ-नमी।
मैंने ख़्वाबों में चूमा,
हुआ बे-अख़्लाक़
मैं ग़ुस्ताख़।।
शेर ४:
तिरी ख़ामुशी बोली, मैं सुनता रहा ख़्वाबों
में।
रात भर तिरे चेहरे का नूर हुआ इशराक़, मैं ग़ुस्ताख़।।
मक़ता:
"मेघ" चुप है मगर दिल
में तिरा तराना है।
दुनिया को नहीं मालूम ये इश्तिराक़, मैं ग़ुस्ताख़।।
रविवार, १४/९/२५ , ९:०३ PM
अजय सरदेसाई -मेघ
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अख़्लाक़ = अच्छे संस्कारों वाला, शिष्ट और आदर्श व्यवहार
करने वाला व्यक्ति
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मुस्ताक़ = इच्छुक, आतुर
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इत्तिफ़ाक़ = संयोग, घटना
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तिश्नाक़ = प्यासा, आतुर
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बे-अख़्लाक़ = बदतमीज़, बिन-शिष्टाचार
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इशराक़ = सुबह का उजाला, रौशनी का फैलना
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इश्तिराक़ = साझेदारी, साझापन
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अख़्लाक़ = अच्छे संस्कारों वाला, शिष्ट और आदर्श व्यवहार
करने वाला व्यक्ति
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