प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday 20 September 2021

अश्क

अश्कों को तुम यु न छुपाओ पहचान ये उन आखों कि है I
जिस दिल में खुदा बसते है ,जो ये बहते है इन्हे बहनेदो II
  
दर्द-ए-दरिया को उफान और दर्द-ए-दिल अज़िय्यत में है I
पलकों कि पुश्त खोल कर , जो ये बहते है इन्हे बहनेदो  II

अश्क रूह के मोती है और खुदा कि ने'मत है I
पता नहीं कब सुख जाए ,जो ये बहते है इन्हे बहनेदो  II

बेगानों  के दर्द में जो बहे तो ये क़तरा-ए-पाक है I
क़तरा-ए-नापाक न होने दो , जो ये बहते है इन्हे बहनेदो  II

एहसास के समंदर में अश्क वो जज़्बात-ए-पिन्हाँ है I
सुकून-ए-दिल-ए-मज़लूम है , जो ये बहते है इन्हे बहनेदो  II

बात पते कि है ' मेघ ' तुम समझो और गांठ बांधलो I
अश्कों को तुम न छुपाओ कभी ,जो ये बहते है इन्हे बहनेदो II

अजय सरदेसाई ( मेघ )

२०/९/२०२१ , ७:४६ PM

अश्क – आंसू , tears

दर्द-ए-दरिया – sea or ocean of pain

उफान – उबाल , high tides

अज़िय्यत - कष्ट, दुःख, तकलीफ़, यातना

पुश्त - बांध दिवार 

ने'मत - उपहार, वरदान

जज़्बात-ए-पिन्हाँ - hidden emotions

सुकून-ए-दिल-ए-मज़लूम - peace of heart of the oppressed 


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