प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday 1 September 2021

मा'रिफ़त


 

मा'रिफ़त तुम्हारी  खुदा मुझे कैसे होगी ?

अपनी हि जात  कि इरफ़ाँ  जिसे  होगी !

तिरी पर्दा-दारी है मल्हूज़--ख़ातिर

तुझे दिल की आँखों से हम देखते हैं

मिरे पिंडार--इबादत का  कुछ तो  गुमान  कर

मिटा चिलमन--जहालत ,दिखा जमाल--जलवा-गुस्तर


मेघ

//२०२१ , १२:५० PM




मा'रिफ़त - ईश्वर का ज्ञान knowledge

अपनी हि जात - अपने आप को ( who am I )

इरफ़ाँ  होनाज्ञान होना , get to know , understand

पर्दा-दारी  - छूपना , प्रकट होना , invisibility

मल्हूज़--ख़ातिर - borne in  mind , अपने जेहेंन में है

मिरे - mine

पिंडार--इबादत - आराधना कि गौरव , भक्ती का अभिमान

गुमान करना  - अनुमान करना , कल्पना करना, विचार करना, बारे में  सोचना

चिलमन--जहालत - अज्ञान का पर्दा , veil of ignorance 

जमाल--जलवा-गुस्तर - अपने (सच्चे , असली ) स्वरूप को प्रकट कर


जमाल--जलवा-गुस्तर - अपने (सच्चे , असली ) स्वरूप को प्रकट कर


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