प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Saturday 18 September 2021

जिंदगी जब तुम रु-ब-रु थी


जिंदगी अब तो तू  मिरे तमन्नाओ कि सराबों में भी नाही मिलती 
जाने कहा गये वो दिन--वक्त जब तुम हम-'इनाँ थी I

ढूँढता हु भूली हुई यादों कि ख़राबों में भी वो वफ़ा के मोती
जब मैं मैं था वो वक़्त था और जिंदगी जब तुम रु--रु  थी I

मिटाऊ तो कैसे ये फांसला--दरमियान  जो हम-तुम में है सिमटी

जिंदगी मिरे फ़साने से कभी तुम भी तो वाक़िफ़--हाल ना थी


अब वो मैं वो तूम न वो माज़ी है और वो ख़्वाहिशें  खिलती

जाने क्यों ये दिल धड़कता है 'मेघ' जैसे फिर मेहरबान  तुम थी I

-मेघ-

१८//२०२१ , :४६ PM

 

 

मिरे  - मेरे   , mine

तमन्ना - कामना, आकांक्षा ,desire

सराब - मृगतृष्णा, भ्रम, मिराज ,Mirage

हम-'इनाँ - सहचर, सदृश, fellow traveler, companion

ख़राब – desolate ,deserted ,desert
रु--रु  - आमने-सामने, सम्मुख, प्रत्यक्ष, मुक़ाबिल
फांसला--दरमियान – distances between us
अफसाना – कहानी ,दास्ताँ ,story of life 
वाक़िफ़--हाल - किसी की दशा से ठीक-ठीक परिचितकिसी घटना-विशेष का वृत्तांत जाननेवाला

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