प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday, 18 August 2025

ग़ज़ल : कूज़ागर ( Potter)


ऐ कूज़ागर, तूने मुझे किस मिट्टी से बनाया है।
न आग जला सकी है, न पानी भिगो पाया है।।

पत्थर भी टकराए तो जिस्म मेरा टूटा नहीं।
तुझसे पूछना है कि मुझे क्यों इस तरह बनाया है।।

चार रोज़ का चलन होना था, उम्र-भर का बोझ बना।
इतना सख़्त क्यों बना दिया, ये सफ़र मुझे न भाया है।।

मेरे साथी थे कुछ, एक-एक कर टूट गए।
मुझ पर सितम और उन पर तूने बड़ा करम ढाया है।।

अब इस बदन-ओ-मंजर से जी मेरा उब आया है।
'मेघ' नई शक्ल ओढ़ लूँ अब, इस ख़याल ने बड़ा तड़पाया है।।

सोमवार, १८/८/२५ , ९:४५ PM
अजय सरदेसाई -मेघ

कूज़ागर = potter ( कुंभार)

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