तुने अब तक मुझे सिर्फ दर्द-ओ-मायुसी ही दि है ज़िन्दगी।
नए साल में कुछ यादगार पल और खुशियां भी ले आना ।।१ ।।
ऐ ज़िन्दगी तु अब जरा मुझसे तमीज से पेश आना ।
शिकायत नही इल्तेजा है मेरी जरा नजाकत से आना ।।२ ।।
वक्त को कहाँ पता है तु उसे कहाँ ले जा रही है ज़िन्दगी ।
इस बार मुझको बता उसे कहाँ किस जगह है ले आना ।।३ ।।
ज़िन्दगी तुझे ढुंढता फिर रहा हुं मै तिरा पता है कहाँ।
कहदे मिरे कानों में के परस्तिश के लिए कहाँ है आना।।४ ।।
ज़िन्दगी तु सोचती है के मैं जिन्दा हुं लेकिन ये सच नहीं ।
बता ऐ जिन्दगी के तेरे लिए मेंरी लाश को कहाँ है आना ।।५ ।।
परस्तिश = पूजा, आराधना, इबादत.
रविवार दिनांक ३१/१२/२३ ,६:१८ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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