न जाने क्यों आप हमसे रुठ गए ।
जो देखें ख़्वाब वो क्यों टूट गए।।
दुश्मनों की इतनी औकात कहाँ थी।
वो दोस्त थे हमारे जो हमें लूट गए ।।
आपकी आंखें बड़ी क़ातिल है जानम ।
फिर नजरों से कैसे कुछ आशिक छुट गए ।।
बेचारा पॉकेट मार लोगों के हाथ लगा ।
और क्या होना था लोग उसे कूट गए ।।
वक्त उसका ही न ठिक था शायद ।
इसलिए तो उसके नसीब फूट गए ।।
बुधवार,१७/१/२०२४ , ८:५३ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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