तिरी ऑंखो की शबनम गर मेरे होंठों पर होती ।
तिरी ऑंखे नम ना होती मिरी प्यास बुझ गई होती ।।
शिद्दत से अगर झांको मिरी ऑंखो में कभी ऐ हसिन ।
ऑंखो के रास्ते दिल की गहराईयों मे उतर गयी होती ।।
ये जो मज्मा सा लगा है तेरे दर के सामने अभी ।
ना होता जो तुने हुस्न कि यु नुमाइश न कि होती ।।
मैंने मोहब्बत से तौबा न की होती ज़ालिम ।
तुने मुझसे गर इश्क में बेवफाई न की होती ।।
जिन्दगी भर मैंने ओ सनम तिरी इबादत की होती ।
इनायत भरी बस इक नज़र तुने मुझपर डाली होती ।।
गुरुवार दिनांक २१/१२/२३ , ५:१५ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )
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