ज़िन्दगी तेरे इश्क में मैं बस जिन्दा रहा ।
सब साथ होते हुए भी मैं हरदम तन्हा रहा ।।
ज़िन्दगी तुने क्या क्या न मुझे ग़म दिया।
दिल तंग था मेरा फिर भी सहता रहा ।।
ज़िंदा लगता हूँ मगर ज़िंदा नहीं मैं ज़िन्दगी ।
दिल में मेरे अब न एक भी जज्बात रहा ।।
ऐ ज़िन्दगी मैंने तेरे लिए क्या क्या न किया I
तूने खून माँगा मुज़से और मैं खून देता रहा ।।
अब तो लोटा दो वो ख़्वाब जो तुने छिन लिए ।
बार बार टूटा है मेरा दिल,अब सब्र न रहा ।।
बड़ी आरजू थी मुझे कोई गुलिस्ताँ मिले ।
ज़िन्दगी भर एक कली को तरसता रहा ।।
हर तरफ दूर तक आलम बड़ा सब्ज़ था ।
मैं अकेला ओस कि बुंद को तरसता रहा ।।
तेरे इंतजार में रात भर में सो न सका ।
अँधेरे में बस यूँही करवटें बदलता रहा ।।
क्या वजह है तू इतनी नाराज़ है ज़िन्दगी ।
यही एक बात मैं ज़िन्दगी भर सोचता रहा ।।
ज़िन्दगी में एक दौर ऐसा भी रहा ।
शनिवार , ०९/१२/२०२३ , ०३:३७ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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