जिन्दगी तो पहले से ही गुमराह थी मेरी।
फिर तेरे मिलने से ये मुकर्रर भी हो गया।।
ज़माने ने कहा के तुमसे त'अल्लुक़ न रखें।
और एक मैं था के राब्ता बढाता चला गया।।
ख्वाहिशें तो बहुत थी मुझे ज़िन्दगी से मगर।
ख्वाब तुटते गये और मैं अरमान जलाता गया।।
रास्तें बड़े लम्बे थे और अभी मंज़िल थी बड़ी दूर।
हर मिल का पत्थर जब आया मैं रिश्ते छोड़ता गया।।
सवंर जाती अगर ज़िन्दगी तो फिर वो ज़िन्दगी क्या थी।
जो बिगड़ गए ज़िन्दगी के पल वह मैं भुलाता चला गया।।
रविवार १७/१२/२३ , ०४:२२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )
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