प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday 24 April 2024

दरख़्तों से पुछा


दरख़्तों से पुछा मैंने खुसफुसाने का सबब

जवाब वहॉँ से आया के हवाएं चल रही है

 

आफताब से पुछा मैंने आग उगलने का सबब

जवाब वहॉँ से आया के बादलों में नमी नहीं है

 

गुलों से पुछा मैंने उनके  खिलने का सबब

जवाब वहॉँ से आया के रुत बदल गई है।

 

एक बुलबुल से पूछा उसके खुशीसे गुनगुनाने का सबब

जवाब मिला के रब की बनाई दुनिया में कोई कमी नहीं है।

 

इक इन्सान से पुछा मैंने बारिश में भिगने का सबब

जवाब मिला मुझे के पास उसके कोई छत नहीं है।

 

 

बुधवार २४//२४ ०१:४० PM

अजय सरदेसाई (मेघ) 


सबब = कारण


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