प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday 5 May 2021

कुछ कहना हे खुदा से

आज कल किसी भी बात से मैं हैरान नहीं I

ऐ खुदा तेरी इस जि॑दगी से कौन परेशान नहीं I

केहने को तु खुदा है पर तेरी फितरत पर मुझे शक है I

क्यों किसी मासुम को भी इस गुरबत से कोई छुटकारा नहीं I

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माना के तेरे रेहमोकरम पर जिते है हम सभी I

इस तरह उसे जताने का यह सबब तो नाही I

तेरे खुदा होने का तारुख भी हमसे ही तो है I

तुम होकर भी न रहोगे खुदा अगर इस दुनिया में हम नहीं I

हर शक्स को यह हक है के हम पुकारे तुझे I

मगर भुले तो याद दिलाने का यह सबब ठिक नहीं I

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सितम तुम्हारे खुशीसे सहलु I

न फरियाद कोई करु , अपने लब सिलु I

लेकिन ऐ खुदा यह तो बता के आखिर माजरा क्या है?

जुस्तजु तेरी हर बशर को है I

तु रुबरु है मगर बसर में नहीं I

तेरे होने किआहट दिल सुनता तो है I

तु असर में भी है मगर नजर में नहीं I

ऐ खुदा यह तो बता के आखिर ये माजरा क्या है?



मेघ

५/५/२१ ३:०० PM

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