आफताब डुब क्या गया और चराग जल उठे।
हम बर्बाद क्या हुए और वो मचल उठे।
जब बाम-ए-फलक पर लिखी मैंने मिरी दास्तां।
झुठलाने उसे देखिए जानां अपनी कब्र से उठे।
आज फिर याद कोई चोंट पुरानी आई।
जब याद दिलाने देखिए वो बेसब्री से उठे।
मैने तो मांगी थी थोड़ीसी मुहब्बत उनकी।
लेकिन दिल जलाने के लिए वो बड़ी शिद्दत से उठे।
बड़ी मुश्किल से मिली थी खुशी जिंदगी में।
मगर न जाने आचानक ये गुबार कहां से उठे।
शनिवार, दिनांक ८/९/२०२३ , ५:५१ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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