ऐ जिन्दगी ता-'उम्र तिरी खिदमत में गुजारी हैं ।
तिरे हर हुक्म कि तामिल मैंने हंसते हंसते कि हैं ।१।
तिरे हर हुक्म कि तामिल मैंने हंसते हंसते कि हैं ।१।
तिरे इश्क के चक्कर में मैंने सब भुला दिया है।
ना वो इबादत और ना वो ख़ुलूस अब मुझ में बाकी हैं ।२।
जो वक्त गुजर गया वो तमाम तेरी जुस्तजू रही हैं।
फिर भी ऐ जिन्दगी तु होकर भी मेरी नहीं रहीं हैं ।३।
ऐसा क्या गुनाह हुवा जो तु मुझसे खफा हैं।
जिन्दगी आज तक तुमसे कुछ भी तो नहीं मिला हैं ।४।
उम्र का तकाजा हैं जिन्दगी और बदन मेरा थका हारा हैं।
अब बक्श दे मुझे पंछी पिंजरें से उड़ जाना चाहता हैं ।५।
शुक्रवार, १५/९/२०२३ , ४:५४ PM
अजय सरदेसाई (मेघ )
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