प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Wednesday, 13 September 2023

वहीं मिलते हैं।


दिल की किताबों में यु न झांको सुखे गुल मिलते हैं।

इसी राह पर आगे चलते रहो तो दिलजले मिलते हैं।। 


तुम्हे अगर यहाँ  मिलने से ऐतराज है तो कोई नहीं ।

जगए और भी है मिलने कि तुम जहाँ कहों वहीं मिलते हैं।


क्या तुमने देखा है उस जगह को चांदनी रात में।

आज भी चांदनी रात है चलो चलकर वहीं मिलते हैं।।


मौसम बड़ा खुश मिजाज है और वस्ल की रात है।

दुर वादियों में चलते हैं उस झिल के किनारे वहीं मिलते हैं।।


कुछ दुर साथ तुम चलो कुछ दुर साथ हम भी चलते हैं।

दुनिया बेशक कुछ भी कहें जहाँ कसक हो दिल वहीं मिलते हैं।।


बुधवार दिनांक १३/९/२०२३ , ११:१२ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

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