प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Sunday 25 August 2024

नुक्ताचीं है ये टूटा दिल


 

नुक्ताचीं है ये टूटा दिल और ग़म की रात है।

दिल सह रहा है ग़म और दर्द भी साथ है।।

 

गुजरेगी ये शब जाने कैसे मिरे दिल पर।

दिल मिरे संभल,तू बहुत नाज़ुक मिजाज है।।

 

चुपचाप बैठकर बस धड़क रहा है,क्या खास है।

आज कोई तन्क़ीद नहीं तुमसे,ऐसी क्या बात है।।

 

शायद जिसकी नुक्ताचीनी करने से थे बड़े वलवले

उसी की कमी है आज,क्या इसलिए तु उदास है। 

 

क़फ़स में रहकर हर पल उड़ने के ख्वाब देखता है।

कितना मासूम है दिल,ख्वाब आजादी के देखता है।।

 

रविवार, २५//२४ , १२:३० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

नुक्ताचीं = (विशेषण, adjective )  छोटी छोटी बातों पर भी आलोचना करने वाला , nitpicker

नुक्ताचीनी = "क्रियापद" , verb

नाज़ुक मिजाज = कमजोर , weak

तन्क़ीद = आलोचना या समीक्षा

क़फ़स = पिंजरा

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