जिन्दगी से तो रुक्सत हो गयी मगर क्या यादों से जाओगी।
चाहे जितनी दुर चली जाओ,मिरे दिल से कैसे जाओगी।।
चाहे जहाँ तुम जाओ ,क्या तुम मुझे भुला पाओगी।
मेरी नज़र ढूंढ ही लेगी, जहाँ कहीं छूप जाओगी।।
इन मिसरों से जो अशआर है बने,ये मेरे पैगाम है तेरे लिए।
क्या इन्हे यु अनसुना करके के ठुकराके चली जाओगी।।
ये मेरे शेर नहीं , मेरे दिल के घाव है जो बताने है।
क्या इन घावों को सरए बिना ही तुम जाओगी।।
इस दुनिया में मेरे सिवा क्या तुम जि पाओगी।
सांसे अपनी तुम यहाँ कैसे से छोड़ जाओगी ।।
गुरूवार , २२/०८/२०२४ १६ :०० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
No comments:
Post a Comment