प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday 22 August 2024

कैसे जाओगी


जिन्दगी से तो रुक्सत हो गयी मगर क्या यादों से जाओगी।

चाहे जितनी दुर चली जाओ,मिरे दिल से कैसे जाओगी।।

 

चाहे जहाँ तुम जाओ ,क्या तुम मुझे भुला पाओगी।

मेरी नज़र ढूंढ ही लेगी, जहाँ कहीं छूप जाओगी।। 

 

इन मिसरों से जो अशआर है बने,ये मेरे पैगाम है तेरे लिए।

क्या इन्हे यु अनसुना करके के ठुकराके चली जाओगी।।

 

ये मेरे शेर नहीं , मेरे दिल के घाव है जो बताने है।

क्या इन घावों को सरए बिना ही तुम जाओगी।।

 

इस दुनिया में मेरे सिवा क्या तुम जि पाओगी।

सांसे अपनी तुम यहाँ कैसे से छोड़ जाओगी ।।

 

गुरूवार   , /०८/२०२४  १६ :००   PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

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