प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday 22 August 2024

वो खिलौने बचपन के,मैंने संभाल रखे है


 

वो खिलौने बचपन के,मैंने संभाल रखे है।

ऐसी यादों के कयी परिंदे मैंने पाल रखे है।।

 

कच्ची धूप में,पथरिले रास्ते अक्सर सुहाने लगते है।

जंगल के वो कच्चे रास्ते,अक्सर क्यो मुझे पुकारते हैं।।

 

वो बरगद का भुत,जिसकी कहानी दादी कभी सुनाती थी।

कहानी सुनाकर हम बच्चों को बहुत डराया करती थी।।

 

वो बरगद अब सुख गया है ,बड़ा बौना लगता है।

वो अफ़साना भूत का,दादी का फ़साना लगता है।।

 

वो सावन के झूले जो पेड़ों पर हमने झुले थे ।

कहाँ गए वो पेड़,जिनपर चढ़कर हम खेले थे।।

 

कुछ नहीं है गांव में अब ,बस है यांदो का बसेरा।

सालो बाद जब आया नदी किनारे,मुझे भुली यादों ने घेरा।।

 

गुरुवार २२/८/२०२४ ,१८:०३ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

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