प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday 15 August 2024

लेना होगा जनम हमें कई कई बार -New Verses


फूलों की नरमी ,शोलों की गरमी ,तुझ में सभी है समाई

जिस ओर देखूं लगता मुझे है,मुझे देखकर तु मुस्कुराई

दिल की हो हसरत,मन की लगन हो,या कोई ख्वाब आवारा

जानु नही ये,लेकिन पता है,दिल है ये कबसे तुम्हारा

बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार

लेना होगा जनम हमें कई कई बार

 

तेरा और मेरा, ये रिश्ता सुहाना, सदियों जनम हे पुराना

देखो तो इसको,चमकता है ऐसे,जैसे हो कोई नगिना

आओ जरा तुम ,नजदीक मेरे और ,पलको मेरी छुप जाओ

अब दुर जाके ,कसम है तुम को, बेताबी मेरी यु बढाओ

बादल बिजली ,चंदन पानी जैसा अपना प्यार

लेना होगा जनम हमें कई की बार

 

एक रोज मैंने,एक रोज तुमने,दोनों ने दिल अपना खोया

प्यार मे तेरे, बेदार होकर ,बरसों से मैं ना सोया

कोई नहीं है ,दुनिया में मेरा,तेरा ही है अब सहारा

मै जानु ये ,मै तेरा हु लेकिन ,तुम भी कहो हु तुम्हारा

बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार

लेना होगा जनम हमें कई कई बार

 

काली घटा हो,चंचल हवा हो,या हो कोई परवाना

कुछ भी हो लेकिन,मचलता ही जाए,हो कोई ऐसा दिवाना

कोई सफर हो,कोई डगर हो,या हो नदिका किनारा

इस दुनिया में ,कभी कभी तो ,मिलना है हमको दोबारा

बादल बिजली,चंदन पानी जैसा अपना प्यार

लेना होगा ,जनम हमें, कई कई बार

इतना मदिर ,इतना मधुर ,तेरा मेरा प्यार

लेना होगा जनम हमें कई कई बार

 

शुक्रवार १६//२४ ,१२:२८ AM

अजय सरदेसाई (मेघ) click play button to listen below

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