प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday 19 August 2024

रंजिशी ही सही - नये छंद

रंजिशी ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ।

फिर से मुझे, छोड़ के जाने के लिए आ।।


तआरुफ़ एक उम्र से, खुशी से मेरा नहीं।

दर्द से ही,मुतारफ मुझे करने के लिए आ।।


है समझते लोग के तुझे कोई मोहब्बत मुझसे नहीं।

मेरा सही,उनका ये भरम ही तोड़ने के लिया आ।।


कई दिनों हुए मायूस बैठा है आफ़ताब फलक पर।

राहत--जाँ ,उस मायूसी को तो मिटने के लिए आ।।


दुनिया का तुज पर ये इलज़ाम है, के तू बेवफा है।

कुछ और नहीं तो ज़िल्लत को इस मिटने के लिए आ।।


मैं रिन्द हूँ,मुझे तेरा ही सहारा है उम्र भर।

तू  बनकर सकी  ,ये सहारा देने के लिए आ।। 


ये दिल्लगी नहीं,दिल की लगी है जालिम। 

दिल की लगी ये प्यास बुझाने के लिए आ।। 


कब से ये आँखें तिरी इंतज़ार में है तक रही।

राहत--हयात ,इन आँखों की राहत के लिए आ।। 

  

 

सोमवार  , १९/०८/२०३४ १२:०३  PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

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