अब न वो दर्द न वो ग़म और तन्हाई हैं।
जो तेरी याद दिल में थी मैंने भुलाई हैं।।
वक्त भी क्या चिज ख़ुदा ने बनाई हैं।
ये वो शय हैं जो हर ज़ख्म की दवाई हैं।।
हम सांस भी लेते थे कभी जिनके करम से।
उन्हीं को जिंदगी बख्श देने की रुत आई हैं।।
सुना हैं की अपने हुस्न-ओ-रंग पर उसे जो इतना गुरुर हैं।
कह दे उसे इत्मीनान रख जरा वक्त दे तेरी भी सुनवाई हैं।।
कभी ये ख़याल छु जाता हैं की वक्त वो दयार हैं "मेघ"।
जिससे गुजर कर हर चिज बदली बदली सी लौटकर आई हैं।।
बुधवार, ५/९/२३ ७:५८ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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