पहले हम सब एक थे और अब दो हो गए ।
दो जिगरी दोस्त थे जो अब दुष्मन हो गए।।
पहले थे इंसान मगर अब किसी धर्म के हो गए ।
कुछ हिन्दू बने और कुछ मुसलमान हो गए।।
एक दुसरे पर जान छिड़कते थे जो कभी वल्लाह।
देखिए कैसे एक दुसरे कि जान के दुष्मन हो गए।।
सरजमीं का भी कोई महजब होता है,वो सभी को अपनाती है।
ये क्या नागवारी थी के टुकड़े करके सब अंजान हो गए।।
पहले यहॉं से वहॉं जाना आना रहता था अक्सर ।
अब उस मिट्टी से बहुत से पाव बे-निशान हो गए ।।
हवाओं को और परिंदो को आजतक किसने रोका हैं ।
वो तो हम इन्सान हैं जो हालातों से कम-शान हो गए।।
शुक्रवार, २०/१०/२०२३ , ०३:१२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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