उसके आंखों की चमक बता रही हैं कि वो भी उर्दू जानती है I
अब चुनु किसे उसके हुस्न को या ग़ज़ल को , बड़ी पशोपेश हैं
II1II
शेर तो फिर हम भी कहते हैं, ग़ज़ल हम भी पढ़ते हैं
I
मगर ये हुनर उनका है , जो लफ़्ज़ों से दिल चिर देते हैं II2II
अब अपने दिल पे पड़े छालो का क्या हिसाब हैं
I
कब वो
मरहम लगा देते हैं,बस इसी का इंतज़ार हैं II3II
मैं जानता हूं और वो भी,के ये इश्क अब पुराना हो चला हैं I
इसी लिए जनाब हम उसके दिए जख्मों को शादाब रखते हैं
II4II
जिनेकी सभी उम्मीदें,सच कहता हूं अब मैंने छोड़ दि है I
बस इंतजार इसी का है "मेघ" के वो कत्ल कब करते हैं II5II
शुक्रवार १३/१०/२०२३ , ०३:४८ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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