प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Friday, 13 October 2023

उसके आंखों की चमक


 

उसके आंखों की चमक बता रही हैं कि वो भी उर्दू जानती है I

अब चुनु किसे उसके हुस्न को या ग़ज़ल को , बड़ी पशोपेश हैं  II1II

 

शेर तो फिर हम भी कहते हैं, ग़ज़ल हम भी पढ़ते हैं I

मगर ये हुनर उनका है , जो लफ़्ज़ों से दिल चिर देते हैं II2II

 

अब अपने दिल पे पड़े छालो का क्या हिसाब हैं I

कब वो मरहम लगा देते हैं,बस इसी का इंतज़ार हैं  II3II

 

मैं जानता हूं और वो भी,के ये इश्क अब पुराना हो चला हैं I

इसी लिए जनाब हम उसके दिए जख्मों को शादाब रखते हैं II4II

 

जिनेकी सभी उम्मीदें,सच कहता हूं अब मैंने छोड़ दि है I

बस इंतजार इसी का है "मेघ"  के वो कत्ल कब करते हैं II5II

 

शुक्रवार १३/१०/२०२३ , ०३:४८ PM

 

अजय सरदेसाई (मेघ)

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