माझे स्नेही डॉ घनश्याम बोरकर यांच्या त्याच नावाच्या कविते वरून मला ही स्फुरलेली ही कविता ( नव्हे प्रार्थना म्हणाना ).ही कविता जरी आज मी लिहिली असली तरी सर्व श्रेय डॉ घनश्याम बोरकर यांचेच आहे कारण ते ह्या कवितेचे खरे मूळ कवी आहेत . त्यांनी लिहिलेली कविता बाजूला दलाली आहे .
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🌹मै शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर🌹
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तू रौशनी ब्रम्हांड की , मैं रौशनी का मुसाफ़िर I
अस्तित्व मेरा तुझसे हैं , मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर II
तू हैं कैवल्य की चांदनी और मैं प्यासा चकोर I
यह प्यास बुझा ऐ ईश मेरे , मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर II
षडरिपूओं से मन लिप्त पड़ा , पञ्च भूतों का शरीर मेरा I
इसे निर्मल बना , शुद्ध कर , मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर II
कलि-संक्रमण का हैं चरम शिखर और धर्म उसके प्रभाव में I
पतन से तू मुझे बचा , मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर II
उस ह्रदय की इस ह्रदय से न छुपीं कोई भी बांत रहें I
इन्हे जोड़ दे तू एक कर , मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर II
तेरी इच्छा में ही मेरी इच्छा रहें , तृष्णा से मन शांत रहें I
बुद्धि मेरी तू विमल कर ,मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर II
ह्रदय कवँल हो निवास तेरा और दिव्या गूंज हो सहस्रार में I
नागिन उठी मूलाधार से , तू अमृत पीला , अब न दूर कर II
मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर , मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर , मैं शुन्य हूँ , तू पूर्ण कर II
शनिवार २९/५/२०२१, ४:१० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
अजय सरदेसाई (मेघ )
२९/५/२०२१ - ४:१० PM
No comments:
Post a Comment