प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday 6 May 2024

मिर तक़ी मिर - A Tribute


दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया

हमें आप से भी जुदा कर चले

बिना सरफ़रोशी,चारा न था
हम आशिकी अपनी मिटा कर चले -१
बड़ी आरजू थी जलू इश्क़ में
तो खुद को पतंग फिर बना कर चले -२
एक रोज़ जब तुम न दिखाई दिए
तो आँखें बंद कर हम ,तिरे गली से चले -३
अँधेरे जो छाए , शहर में तेरे
लौ अपने दिल की हम ,जलाकर चले -४
जभी सोचते है ,हो ,तसव्वुर में तुम
तुझे भूल के अब कहाँ हम चले -५
जब चरागों से तिरी महफ़िल सजी
चौखट पे दुआ कर हम,तेरे दर से चले -६
वफ़ा की शमा युही जलाते रहे
देखा न तुमने तो, हंसकर चले -७
जो जख्म खाये सब,तूने दिए
दाग वो किसे हम ,दिखाकर चले -८
देखा तेरे दर पे तो रकीब ही मिले
ग़मसार होकर,तेरे गली से चले -९
कुछ आखरी पल है ,जीने को अब
करके सज्दा तुम्हे हम,याँ से चले -१०

सोमवार ६/५/२०२४ ०४:४३ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)