जानता था के तुम बहुत दूर जाओगे।
पता न था के दिल से भी दूर हो जाओगे।।
नेए रिश्तों को पुक्ता बनाते बनाते।
पूराने रिश्तों को धिरे धिरे भुल जाओगे।।
फलक पर सितारे मुकम्मल है उनके जहाँ में।
क्या उनके लिए तुम अपना जहाँ छोड़ जाओगे।।
भवरे तिरा राब्ता होता नहीं इस गुलसितां में अब ।
इस गुलशन में गुल खिलते नहीं क्या ये सबब दे जाओगे।।
जाओ अपना मुकम्मल आसमां खोज आओ तुम ।
उम्र भी है,फुर्सत भी है,और क्या ही कर जाओगे।।
सोमवार १०/०९/२०२४ ०१:०५ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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