प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday 9 September 2024

जानता था के तुम बहुत दूर जाओगे


जानता था के तुम बहुत दूर जाओगे।

पता था के दिल से भी दूर हो जाओगे।।

 

नेए रिश्तों को पुक्ता बनाते बनाते।

पूराने रिश्तों को धिरे धिरे भुल जाओगे।।

 

फलक पर सितारे मुकम्मल है उनके जहाँ में।

क्या उनके लिए तुम अपना जहाँ छोड़ जाओगे।।

 

भवरे तिरा राब्ता होता नहीं इस गुलसितां में अब

इस गुलशन में गुल खिलते नहीं क्या ये सबब दे जाओगे।।

 

जाओ अपना मुकम्मल आसमां खोज आओ तुम

उम्र भी है,फुर्सत भी है,और क्या ही कर जाओगे।

 

सोमवार   १०/०९/२०२४    ०१:०५ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


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