प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Wednesday, 25 September 2024

फ़ानूस बनकर ये कौन


 

वाह,क्या तारीफ करे उस फनकार के फन की हम।

के लफ़्ज़ों से मय का नशा दिल में उतार रहा है कोई।।

मुमकिन है के मिर फिर से आगए हो इस जहां में।

सदियों के बाद,सुना है ऐसा दिलशाद सुखनवर कोई।।

लफ्जों का क्या है,युही गुमनाम से इंतजार में बैठे रहते हैं। 

कमाल तो तब होता है जब उनसे अशआर बनाता है कोई।।

कौन है वो सुखनवर,कहदो उसे के ऐसी सुखनवरी से बाज आए।

लगता है,वो सुखनवरी नहीं,लफ्जों की जादूगरी कर रहा है कोई ।।

क्या कहें,के क्या क्या दिल को लगता है तिरी नज़्म सुनकर। 

लगता है जैसे सदियों से बिछड़ा,अपना बुला रहा है कोई।।

तिरे अशआर वो गुंचा--पल--गुज़िश्ता है।  

जिस में हर पल यादों के गुल खिला रहा है कोई।।

ग़म की आंधी सबकुछ उड़ा ले गई तिरी जिंदगी से "मेघ " 

फिर फ़ानूस बनकर ये कौन,प्यार के लौ की हिफाजत कर रहा है कोई।।

 

बुधवार , २५/०९/२०२४  , १८:५५ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

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