प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Saturday 21 September 2024

दुनियां तिरे दस्तुर बड़े निराले हैं


 

दुनियां तिरे दस्तुर बड़े निराले हैं।

जिस तरफ देखु,छिपे दर्द निराले हैं।।

इंसान के होंठों पर मुस्कान तो है।

हर दिल में मगर बसें तूफां निराले हैं।।

कल की फ़िक्र है मगर चहरे पर दिखाते नहीं।

हर फ़िक्र को धुवें में उड़ानें के अंदाज निराले हैं।।

एक नई चुनौती लेकर मिलती हो तुम हर पल।

ज़िन्दगी, मगर हम भी चुनौती बाज निराले हैं।।

वक्त ज्यु सिकुड़ लेता हूँ मैं अपनी आंखों में।

देखो मिरे ख़यालों के ढंग बड़े निराले हैं।।

आसमाँ मैं बादल तो सैकड़ो नज़र आते है।

मगर बरसते है जो ,बादल वह निराले है।।

ईश्वर तू है भी या नहीं,यह सवाल सताता है अक्सर। 

फिर भी लोग पूजते है तुझे,तिरे रूप निराले निराले है।।

 

शनिवार , २१/०९/२०२४   , १५:१५  PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

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