प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Sunday 1 September 2024

माँ की रजाई


 

शाम को बालकनी में बैठा था। सूर्यास्त होने को ही था, ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। माहौल बहुत ही अच्छा था, जाने क्यों गर्म-गर्म आलू वड़े खाने की इच्छा जाग उठी। मैंने गायत्री (मेरी पत्नी) से पूछा की वह भी गर्म-गर्म आलू वड़े खाना चाहेगी क्या?

 

कोने पर मंगेश वड़ा वाले के यहां शाम के इस समय बिल्कुल ताजे और स्वादिष्ट आलू वड़े मिलते हैं। गायत्री को भी आलू वड़ा पसंद है, उसने हाँ कह दिया। मैंने कपड़े पहने और नीचे उतर गया।

 

सच कहूं तो इसका कोई खास कारण नहीं था, बस यूं ही एक ख्याल आया की आज अगर माँ होती और माँ को पता चलता कि मुझे आलू वड़ा खाने की इच्छा हो रही है, तो वह तुरंत तैयारी में लग जाती और आधे घंटे के भीतर गर्म-गर्म आलू वड़े और चाय मेरे सामने होते! माँ का प्यार ऐसा ही होता है, जब बेटे को कुछ खाने की इच्छा होती है, तो वह अन्नपूर्णा उसे पूरा करे, ऐसा कभी नहीं हुआ। आलू वड़े लेकर मैं घर लौटा, गायत्री ने चाय पहले ही तैयार कर दी थी। हम दोनों ने मिलकर बड़े ही चाव से वड़ों का आनंद लिया और चाय पी। मन पूरी तरह से तृप्त हो गया।

 

रात को सोते समय मैंने गायत्री से मेरी पसंदीदा रजाई निकालने को कहा। माँ ने मेरे लिए प्यार से अपनी पुरानी साड़ियों से यह रजाई बनाई थी। यह रजाई मुलायम है और वजन में हलकी है , फिर भी आश्चर्यजनक रूप से गर्माहट देती है। यह रजाई माँ की गोद में होने का एहसास कराती है। जादुई रजाई । आज फिर से वह रजाई ओढ़ने का मन हुआ।

 

पहले जब मैं छोटा था, तो ऐसी ही माँ की गर्म रजाई लेकर पिताजी के पास सोता था। रात को सोते समय पिताजी कहानी सुनाते थे और माँ की उस गर्म रजाई में कहानी सुनते-सुनते कब नींद जाती थी, पता ही नहीं चलता था।

 

आज कितने वर्षों बाद सोते समय माँ की रजाई ओढ़ने का मन हुआ, मुलायम और गर्म। ऐसा लगा जैसे माँ की गोद में गया हूं। सारा डर, चिंता और तकलीफें कहीं गायब हो गईं। सब कुछ हल्का-हल्का लगने लगा, मन में एक खुशी की लेहेर सी दौड़ गई। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे माँ प्यार से मेरे बालों में तेल लगा रही हो। माँ के मुँह से उसका पसंदीदा गीत सुनाई दिया...

 

"सो जा मेरे लाडले, चिंता कर, 

सारी दुनिया की फिक्र भगवान को है । 

चांदनी रात से खुद को लपेटे हुए, 

भगवान की गोद में सो रहा ब्रह्मांड है। 

लाखों तारों की आँखें खोले हुए, 

संसार का पिता अभी भी जाग रहा है।"

 

माँ के प्यार की गर्माहट महसूस हो रही थी। मुझे नींद आने लगी। कब नींद ने मुझे घेर लिया, पता ही नहीं चला।

 

शुक्रवार, ३०/०८/२०२४ ०८:२६ PM 

अजय सरदेसाई (मेघ)

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