प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Monday 9 September 2024

जिन्दगी भर


जिन्दगी भर सुने होंगे गूंजते हुए साज तुमने,

अब कुछ खामोश सदाओं की आवाज भी सुन लो।

 

जिन्दगी भर खुशीयों के मेले सजाएं तुमने,

अब कुछ अधुरे ख्वाबों की तामीर भी चुनलो।

 

जिन्दगी भर जश्न मनाया रुतबे-ओ-दौलत का तुमने,

अब कुछ शौहरत के फाजिल नगमे भी बुन लो।

 

जिन्दगी भर चांद और तारों की रौनाईयों में बिताए तुमने,

अब कुछ दिन अंधेरों की तन्हाई भी जान पहचान लो।

 

जख्म तो दिए दिए तुमने बहुत मुझे ज़िन्दगी तुमने,

उन जख्मों पर नमक छिड़कना भी तो सिख लो।

 

ज़िन्दगी बहुत दर्द दिए है उम्रभर तुमने,

उस दर्द को उम्रभर निभाना भी सिख लो।

 

जिन्दगी भर सुने होंगे बहुत से फसाने तुमने,

अब कुछ जिन्दगी के अफसाने भी सुन लो।

 

 

मंगलवार ११/९/२०२४ १०:२५ AM

अजय सरदेसाई (मेघ)


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