आइने में अपना अक्स देखा,न जाने कौन नज़र आया।
अब मैं क्या कहूं मुझे और क्या क्या नज़र आया।।
कहते है लोग के आइना झूठ बोलता नहीं।
सच कहता हु मगर मुझे सब कुछ झूठ नज़र आया।।
ढूंढ़ता रहा मैं उसे हर जगह शिद्दत से।
खुदा मुझे कहीं नज़र नहीं आया।।
सोचता हूँ के ढूँढू उसे अब आसमाँ में।
इन्सां मुझे जमीं पर नज़र नहीं आया।।
अभी कुछ साल ही बीते थे मुझे मुल्क छोड़कर।
लौटा तो हर शख्स अजनबी नज़र आया।।
मंगलवार , ०८/१०/२०२४ , २२:५० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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