प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Friday 4 October 2024

वे तो बस मुस्लमान थे

 


वे एक महा विपत्तिटिड्डीकी तरह आए
वे स्वच्छ फ़िज़ा पर प्रदूषण की तरह छाए
वे व्याधि थे,ब्राह्मण कहते थे वे मलेच्छ थे
वे मुसलमान थे
 
मरुस्थल से विनाश के रेत उठे
ऊँची उड़ान भरी हर दिशा में उड़े
दूर से दिखाई दिए खून से सने उनके घोड़े 
हर रेत का कण जहाँ भी गिरा
वहॉँ भड़की आग विनाश की
सारे आसमाँ भी जल उठे
कौन थे वे जो घोड़ों पर सवार थे
वे मुसलमान थे
 
कहने को तो वे अम्न के सिपाही है
मासूम खून से सनी उनके इतिहास की स्याही है
विजय से वे जिस दिशा में और जिस ओर बढ़े
वहॉँ वहॉँ लाशों के अम्बार पड़े
सिनगॉगे टूटे औऱ टूटे मंदिर ,
उन जगहों पर अब मस्जिद है खड़े
प्रतिपक्षी के ख़ून में कंधों तक
वे डूबे होते थे
उनकी मुट्ठियों में घोड़ों की लगामें
और म्यानों में सभ्यताओं के नक़्शे होते थे
वे मुसलमान थे
 
वे फ़ारस से आए ,तूरान से आए
समरकंद, फ़रग़ना, सीस्तान से आए
तुर्किस्तान से आए ,वे बहुत दूर दूर से आए
फिर भी वे पृथ्वी के ही कुछ हिस्सों से आए
अपने साथ विनाश की पताका लहराते लाए
वे आए क्योंकि वे सकते थे
वे मुसलमान थे
 
शक्ल उनकी आदमियों से मिलती थीं हूबहू
हूबहू
लेकिन वे  हरगिज़ इंसान थे
वेह्शी दरिंदे तो वे थे ही लेकिन सबसे पहले
वे मुसलमान थे
 
वे होते तो लखनऊ,लक्ष्मणपुर होता
औऱ प्रयागराज कभी भी इलाहबाद होता
दर्द से भरा दीवान--मीर होता
सिर्फ कालिदास का विविध रंगोंसे सजा शाकुंतल होता
वे होते तो भारतीय उपमहाद्वीप में कभी जज़िया होता
मुसलमान होते तो भारत से टूटकर पाकिस्तान होता
वे थे जिन्होंने कई सभ्यताओं को पहनाए कफ़न थे
वे थे जिनके कारण लाखों इंसान दफ़न थे
वे मुसलमान थे
 
वे मुसलमान थे और हिंदुस्तान में थे
और उनके रिश्तेदार तुर्किस्थान में थे
वे ख्वाब बार बार पाकिस्तान का देखते थे
दिल ही दिल में हिंदुस्तान से नफरत करते थे
इमरान ख़ान को देखकर वे ख़ुश होते थे
वे ख़ुश होते थे और ख़ुश होकर डरते थे
वे जितना पी..सी. के सिपाही से डरते थे
उतना ही राम से
वे मुसलमान थे
 
वे मुरादाबाद से डरते थे
वे अपने मुसलमान होने से डरते
वे फ़िलीस्तीनी नहीं थे, लेकिन अपने घर को लेकर घर में
देश को लेकर देश में
ख़ुद को लेकर आश्वस्त नहीं थे
वे उखड़ा-उखड़ा राग-द्वेष थे
वे मुसलमान थे
 
कहने को वे कपडे बुनते थे
कहने को वे कपडे सिलते थे
यह बस एक नज़रों का धोका था
अस्ल वे बस नफरत फैलातें बुनते थे
देश के ज़्यादातर अख़बार यह कहते थे
कि मुसलमान के कारण ही कर्फ़्यू लगते हैं
कर्फ़्यू लगते थे और एक के बाद दूसरे हादसों की ख़बरें आती थीं
उनकी औरतें हिजाबों में लिपटीं छिपती थी
औऱ वे गैरों की औरतों की इज़्ज़त लूटने में वे बढ़े मज़े लेते थे
वे मुसलमान थे
 
वे मुसलमान थे इसलिए
जंग लगे तालों की तरह वे खुलते नहीं थे
वे अगर पाँच बार नमाज़ पढ़ते थे
तो उससे कई गुना ज़्यादा बार लड़ते थे
बम विस्फोट करते थे,अधम मचाते थे 
वे मुसलमान थे
 
लगते वे सब एक ही थे लेकिन नहीं थे
वे शिया ,अशरिया,ज़ैदी, इस्माइली ,सूफी थे
वे अहमदिया ,वहाबी, सलफ़ी, इबादी औऱ देओबंदी भी थे
वे एक थे
वे मुसल्मान थे
वे मुसल्मान थे
वे मुसल्मान थे
और कुछ नहीं वे तो बस मुस्लमान ही थे
 
बुधवार  /१०/२०२४   १३:२५ PM


No comments:

Post a Comment