आइना देखकर उसने अपना मुंह फेर लिया,
उसे ये खुश-फहमी थी की वो अम्न का फ़रिश्ता है।
नख़लिस्तान को उसने एक बड़ा मरुस्थल बना दिया,
क्यों की अक्स उसे हमेशा सच ही कहता था।
मरुस्थल मे कही आब नसिब होती नही ,
उसे ये खुश-फहमी थी की वो अम्न का फ़रिश्ता है।
नख़लिस्तान को उसने एक बड़ा मरुस्थल बना दिया,
क्यों की अक्स उसे हमेशा सच ही कहता था।
मरुस्थल मे कही आब नसिब होती नही ,
कहते है लहु के दरिया ने उसे सुखा दिया।
पहले फ़िज़ाए खुशनुमा थी और खुशनमी थी जिन्दगी में,
फिर एक अम्न का फ़रिश्ता आया,और फिर खिजां आ गयी।
हर तरफ खिलती हुई कलियाँ थी तब गुलिस्तां में,
उस फ़रिश्ते ने बस सुंग क्या लिया,सभी मुरझा गई।
वो चिल्ला चिल्ला कर बोल रहा था की वो अम्न का फ़रिश्ता है,
लोग उसके अम्न से डर गए,उसने सभी को काटकर मार दिया।
फिर ताकत उसकी बढ़ी तो उसने ऐलान कर दिया,
अगर अम्न होगा तो बस उसीका होगा वार्ना न होगा।
वो मानता था के महजब उसीका कामिल है,वह अमन बांटता है,
बाकी सारे काफिर है ,क्यों के वे उसके अम्न को मानते नहीं।
एक दिन सब असलियत जान गए ,उस झूठ को सब पहचान गए,
उसे पंख नहीं वो जान गए,वो इंसान है,फ़रिश्ता नहीं पहचान गए।
फिर सबका डर निकल गया ,सबने उसको घेर लिया,
वो धीरे धीरे आगे बढे , अब वो थे उसके सामने खड़े।
अब उसके आँखों में डर था और उनकी आँखों में अम्न था,
फिर किसीने तलवार चलाई ,लाश फ़रिश्ते की ज़मीं पर गिराई।
जहाँ लाश गिरी वहाँ तूफ़ान उठा,जमीं से एक आब का सैलाब उठा,
आब से एक दरिया तामीर हुआ और फिर मरुस्थल में गुलिस्तां खिला।
जमीं से एक खुशबु उड़ी,फ़िज़ाए फिर खुशनुमा हुई ,ज़िन्दगी फिर ख़ुशनम हुई,
पहले फ़िज़ाए खुशनुमा थी और खुशनमी थी जिन्दगी में,
फिर एक अम्न का फ़रिश्ता आया,और फिर खिजां आ गयी।
हर तरफ खिलती हुई कलियाँ थी तब गुलिस्तां में,
उस फ़रिश्ते ने बस सुंग क्या लिया,सभी मुरझा गई।
वो चिल्ला चिल्ला कर बोल रहा था की वो अम्न का फ़रिश्ता है,
लोग उसके अम्न से डर गए,उसने सभी को काटकर मार दिया।
फिर ताकत उसकी बढ़ी तो उसने ऐलान कर दिया,
अगर अम्न होगा तो बस उसीका होगा वार्ना न होगा।
वो मानता था के महजब उसीका कामिल है,वह अमन बांटता है,
बाकी सारे काफिर है ,क्यों के वे उसके अम्न को मानते नहीं।
एक दिन सब असलियत जान गए ,उस झूठ को सब पहचान गए,
उसे पंख नहीं वो जान गए,वो इंसान है,फ़रिश्ता नहीं पहचान गए।
फिर सबका डर निकल गया ,सबने उसको घेर लिया,
वो धीरे धीरे आगे बढे , अब वो थे उसके सामने खड़े।
अब उसके आँखों में डर था और उनकी आँखों में अम्न था,
फिर किसीने तलवार चलाई ,लाश फ़रिश्ते की ज़मीं पर गिराई।
जहाँ लाश गिरी वहाँ तूफ़ान उठा,जमीं से एक आब का सैलाब उठा,
आब से एक दरिया तामीर हुआ और फिर मरुस्थल में गुलिस्तां खिला।
जमीं से एक खुशबु उड़ी,फ़िज़ाए फिर खुशनुमा हुई ,ज़िन्दगी फिर ख़ुशनम हुई,
कलियाँ चमन में फिर से खिली और अमन की फिर से शुरुआत हुई।
अमन ये फ़रिश्ते का न था,ये अमन तलववर से न था,ये अमन,वार से न था,
ये अमन सरोकार का था,ये अमन डर का न था,ये अमन प्यार का था।
अमन ये फ़रिश्ते का न था,ये अमन तलववर से न था,ये अमन,वार से न था,
ये अमन सरोकार का था,ये अमन डर का न था,ये अमन प्यार का था।
शुक्रवार , ०४/१०/२०२४ , १२:३० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
नख़लिस्तान = Oasis
मरुस्थल = Desert
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