प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Tuesday, 23 April 2024

जो टूटकर भिखरते है


जो टूटकर भिखरते है वो अक्सर शीशे होते है।

जो गिरकर फिर उठते है वो अक्सर दिलवाले होते है।।  

 

किसी को ग़म खा जाए तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं।

जिनका दर्द दवा बन जाये वो अक्सर दीवाने होते है ।।

 

जो गिरकर भी सँभलते है वो जिगरबाज़ होते है।

झेलते है तेज हवाओं को जो वो परवाज़ होते है।।

 

राहों में राही खो जाते है,अक्सर ऐसा होता है।

खोकर जो फिर मिलते है,वो खुशनसीब होते है ।।

 

मुश्किलों से जो डरतें है वो अक्सर नाकाम होते है।

मुश्किलों से जो लड़ते है वो अक्सर कामयाब होते है।

 

 

मंगलवार  २३/०४/२०२४  ०६:३० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


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