पयाम-ए-मुहब्बत अर्ज मैं करता हूँ ।
हर इन्सान से मैं प्यार करता हूँ ।।
रात कितनी भी हो काली, गुमान नहीं।
मै बस सुबह का इंतजार करता हूँ ।।
जिन्दगी के गुलशन में फुल तो है काटे भी।
बस तुम्हे काटे न मिले ये मुराद करता हूँ ।।
ख़ैर-मक़्दम तुम्हारा इस महफ़िल-ए-समा'में जानाँ ।
अब माहौल बनाया है तुने तो एक ग़ज़ल पेश करता हूँ ।।
एक ग़ज़ल आई है मेरे लबोंपर मिरे दिलसे निकलकर ।
मिरे लबों से तिरे दिल मे उतरने का मैं इंतजार करता हूँ ।।
मिरे
दिल-ए-हर तिरी आंखों में खिला जो तबस्सुम है।
तिरे
लबोंपर भी शगुफ्ता हो ये इंतज़ार करता हूँ ।।
पयाम-ए-मुहब्बत = प्यार का
सन्देश message of love ,
अर्ज
= निवेदन
गुमान
= विचार
गुलशन
= बाग़
मुराद
= अभिलाषा
ख़ैर-मक़्दम = स्वागत
महफ़िल-ए-समा' = क़व्वाली की एक सभा
जानाँ
= प्रेमपात्र
दिल-ए-हर
= महबूब ,beloved
तबस्सुम
= मुस्कराहट
शगुफ्ता
= कुसुमित होना , to flower
मंगलवार , ३०/१/२०२४ , ०३:१० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)