प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Friday 28 June 2024

इप्तिदा और इंतेहा


इप्तिदा तिरे जिक्र से हुई। 

तो इंतेहा मिरी कहानी से हुई।।

 

जाने सफर कैसे कट गया तिरी बातों में।

मंजिल पे जब पहूचे,तो शाम रुमानी हुई ।।

 

तुम मुस्कुराती रही और मैं देखता रहा।

आंखों ही आंखों में, सारी बातें हुई।।

 

चराग़ जले जब शाम को फलक पर।

आसमाँ में सितारों की फुलवारी हुई।।

 

तिरे जिक्र से ही दिल बहल जाता है मिरा।

जाने कौन सी मुझपर ये जादूगरी हुई।।

 

दिल की गहराइयों में  'मेघ ' जाने राज छुपे है कितने।

फिर जाने आज क्यों तुम्हे इनसे इतनी सरोकारी हुई।।

 

शुक्रवार, २८//२४ , ०९:५२ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)



 

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