प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
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Thursday, 27 June 2024

बहार-ए-चमन

ये जो बहार--चमन है,लाफ़ानी नहीं है।

ये चंद लम्हों का मेला है,लगकर गुज़र जाना है।

इसपर इतना गुरुर और इतराना कहां अच्छा है।

ख़िज़ां तो हर गुलशन पर आकर ही जाती है

आजतक इस दौर से क्या कोई भी छूटा है।

खाक से आते है सभी,खाक में ही मिल जाते है।

यहाँ कौन है जो ताउम्र युहीं जवाँ रहता है।

हाँ, इस बाजार में हुस्न की नुमाइश तो होती है। 

हाँ,इस बाजार में हुस्न को खरिदार भी मिलता है।

ये बाजार है ,इसका दस्तूर है ,यहाँ सब कुछ बिकता है।

साफ दिल को मगर यहाँ खरिदार कहां मिलता है।

 

शुक्रवार , २८/०६/२०२४   ११:३५

अजय सरदेसाई (मेघ)


 

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