प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Thursday 13 June 2024

कमसीन मुहब्बत की तरह

कुछ दिन बिताएंगे इस दुनियां में मेहमान बनकर।

मुसाफ़िर है, झूमते रहते है डाल डाल एक पंछी की तरह।।

 

आए हैं इस दुनियां में खुशीयॉं बांटने।

फैलेंगे इन हवाओं में हम मुश्क की तरह।।

 

नर्म सबा फैला रही है  ज़मीं पर जैसे ओस के मोती।

हर डाल पर गाएंगे हम चहकता गीत, बुलबुल की तरह।

 

सावन का महीना है और धुप छाव का खेल है।

उभरेंगे आसमाँ में हम इक इन्द्रधनु की तरह।।

 

जिन्दगी गर एक सिपी में छिपा हुआ मोती है।

लाएंगे हम गहरे समंदर से उसे गोताखोर की तरह।।

 

आसमाँ  मैं जैसे रहते हैं चाँद,सुरज और तारे। 

रहेंगे हम भी हर दिल में कमसीन मुहब्बत की तरह।।

 

शुक्रवार १४//२०२४ ,:४० AM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

No comments:

Post a Comment