कुछ दिन बिताएंगे इस दुनियां में मेहमान बनकर।
मुसाफ़िर है, झूमते रहते है डाल डाल एक पंछी की तरह।।
आए हैं इस दुनियां में खुशीयॉं बांटने।
फैलेंगे इन हवाओं में हम मुश्क की तरह।।
नर्म सबा फैला रही है ज़मीं पर जैसे ओस के मोती।
हर डाल पर गाएंगे हम चहकता गीत, बुलबुल की तरह।।
सावन का महीना है और धुप छाव का खेल है।
उभरेंगे आसमाँ में हम इक इन्द्रधनु की तरह।।
जिन्दगी गर एक सिपी में छिपा हुआ मोती है।
लाएंगे हम गहरे समंदर से उसे गोताखोर की तरह।।
आसमाँ मैं जैसे रहते हैं चाँद,सुरज और तारे।
रहेंगे हम भी हर दिल में कमसीन मुहब्बत की तरह।।
शुक्रवार १४/६/२०२४ ,९:४० AM
अजय सरदेसाई (मेघ)
No comments:
Post a Comment