इप्तिदा तिरे जिक्र से हुई।
तो इंतेहा मिरी कहानी से हुई।।
न जाने सफर कैसे कट गया तिरी बातों में।
मंजिल पे जब पहूचे,तो शाम रुमानी हुई ।।
तुम मुस्कुराती रही और मैं देखता रहा।
आंखों ही आंखों में, सारी बातें हुई।।
चराग़ जले जब शाम को फलक पर।
आसमाँ में सितारों की फुलवारी हुई।।
तिरे जिक्र से ही दिल बहल जाता है मिरा।
न जाने कौन सी मुझपर ये जादूगरी हुई।।
दिल की गहराइयों में 'मेघ ' न जाने राज छुपे है कितने।
फिर न जाने आज क्यों तुम्हे इनसे इतनी सरोकारी हुई।।
शुक्रवार, २८/६/२४ , ०९:५२ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)