तस्वीर तिरी फ़ना, दिल
से नहीं होती I
तसव्वुर
से रुख़्सत, तुम क्यों नहीं होती I
बड़े बेआबरू होकर तिरे दर से निकले है I
क्यों कम-असर फिर भी तिरी चाहत नहीं होती I
कहते
है दिलजलों को मुहब्बत रास नहीं होती I
क्यूँकर
फिर भी ये शय दिल से जुदा नहीं होती I
कुछ इस कदर तिरी चाहत का सुरूर छाया है I
हद-ए-गुमाँ से परे, की बात बयान नहीं होती I
अजय
सरदेसाई (मेघ)
सोमवार
, ०७/०३/२०२२
०९:४० PM
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