काफिर न मुझ को समझो यु ,के मैं नमाजी नहीं हूँ I
हर मजलूम दिल है मजीद मेरी , वही सजदा-ओ-इबादत करता हूँ I
सक्त दिल न मुझ को समझो यु , के मैं आब-दीदा नही हूँ I
हर टुटे दिल कि आवाज हूँ ,तस्किन-ए-दिल-ए-महज़ूँ भी हूँ I
ख॑जर-ए-जहर-आगी न मुझ को समझो यु,के मैं आबेहयात नहीं हूँ I
गुमराहो॑ को निशान-ए-राह हुं, प्यासो॑ को आब-ए-नैसाँ भी हूँ I
-मेघ-
३/९/२०२१ ,०६:४२ PM
काफिर – non believer
नमाजी – the who offers prayers daily in
mosque
मजलूम – oppressed
मजीद – mosque
सजदा -ओ-इबादत - prayer performed in a mosque
आब-दीदा – one whose eyes are filled with
tears easily ( very sensitive & emotional )
तस्किन-ए-दिल-ए-महज़ूँ - satisfaction of a melancholic heart
ख॑जर-ए-जहर-आगी – Poisoned dagger
आबेहयात – अमृत , ambrosia
निशान-ए-राह - guiding star
आब-ए-नैसाँ - rains
during spring
No comments:
Post a Comment