जिंदगी अब तो तूम मिरे तमन्नाओ कि सराबों में भी नाही मिलती
जाने कहा गये वो दिन-ओ-वक्त जब तुम हम-'इनाँ थी I
ढूँढता हु भूली हुई यादों कि ख़राबों में भी वो वफ़ा के मोती
जब मैं मैं था वो वक़्त था और जिंदगी जब तुम रु-ब-रु थी I
मिटाऊ तो कैसे ये फांसला-ए-दरमियान जो हम-तुम में है सिमटी
ऐ जिंदगी मिरे फ़साने से कभी तुम भी तो वाक़िफ़-ए-हाल ना थी
अब न वो मैं न वो तूम न वो माज़ी है और न वो ख़्वाहिशें खिलती
जाने क्यों ये दिल धड़कता है 'मेघ' जैसे फिर मेहरबान तुम थी I
-मेघ-
१८/९/२०२१ , १:४६ PM
मिरे - मेरे , mine
तमन्ना - कामना, आकांक्षा ,desire
सराब - मृगतृष्णा, भ्रम, मिराज ,Mirage
हम-'इनाँ - सहचर, सदृश, fellow traveler, companion
ख़राब – desolate ,deserted ,desert
रु-ब-रु - आमने-सामने, सम्मुख, प्रत्यक्ष, मुक़ाबिल
फांसला-ए-दरमियान – distances between us
अफसाना – कहानी ,दास्ताँ ,story of life
वाक़िफ़-ए-हाल - किसी की दशा से ठीक-ठीक परिचित, किसी घटना-विशेष का वृत्तांत जाननेवाला
Amazing!
ReplyDeleteThank You
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