हज़ार राहें, मुड़ के देखीं ,
कहीं से कोई सदा ना आई .
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने,
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई.
वो वक्त जो ठहर के गुजरा,
दिल की सदायें दबा गया वो.
हम सोचते थे अभी थमेगा,
तूफ़ां बरसों तक चला वो.
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने,
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई.
जो तुम न कहते तो कैसे सुनता,
धड़कन बड़ी धिमी चल रही थी,
मिरी ऑंखों की रौशनी भी शायद,
अंधेरे सायों में मिट रही थी,
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई
छुड़ा
के दामन,दरख़्तों के साये,
न जाने क्यु दूर जा रहे हैं.
सोचता हूं के ये मंज़र है कैसा,
दिलों मे शक के साये रहे है.
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई
अगर जो कहती के तुम ना जाओ,
क़दमों
में मेरे कहां जोर था
मैं
सोचता था रोक लेगी मुझ को
पुकार कर फिर बुला लेगी मुझ को
बड़ी
वफ़ा से, निभाई तुमने
हमारी
थोड़ी सी बेवफ़ाई
न बुलाया तुमने, न मैं भी आया ,
ये दौर बरसो युहीं चलाया,
उम्र ढल गयी अब सोचता हूँ ,
क्यों प्यार को मैं समझ न पाया
बड़ी
वफ़ा से, निभाई तुमने
हमारी
थोड़ी सी बेवफ़ाई
हज़ार राहें, मुड़ के देखीं
कहीं से कोई सदा ना आई
बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने
हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई
रविवार ५/५/२०२४ ११:३० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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